Saturday, 26 September 2015

रायसेन का भव्य दुर्ग

रायसेन का भव्य ऐतिहासिक दुर्ग 
रायसेन । भारत की हृदयस्थली मध्य प्रदेश , मध्यप्रदेश की हृदयस्थली रायसेन जिले की शान पहाड़ों की रानी रायसेन नगरी स्थित भव्य ऐतिहासिक दुर्ग जो की वास्तुकला, शिल्पकला, और इसके इतिहास की जीता जगता बेमिशाल उदहारण हैं । रायसेन दुर्ग मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से ४५ किलोमीटर एवं विश्व धरोहर पर्यटन स्थली साँची से २३ कि. मी ,. की दुरी पर स्थित हैं । यहाँ साँची और भोपाल से पहुँचने हेतु सुगम मार्ग हैं , । आज तक इस किले का इतिहास कोई भी पुरातत्व वेदता नहीं बता पाये हैं , क्यूंकि यह किला बहुत ही प्राचीन किला हैं । कालिदास के एक ग्रथ में यहाँ स्थित भव्य शिवमंदिर श्री सोमेश्वर धाम का भी उल्लेख हैं । 
॥ रायसेन किले पर स्थित तोपें के बारे में जानकारी ॥
तारीखे शेरशाही में उल्लेख हैं की दिल्ली का शासक शेरशाह सूरी चार माह की घेराबंदी के बाद भी जब रायसेन किले को जीत नहीं पाया तब उसने तांबे के सिक्को आदि को गलवा कर तोपों का निर्माण करवाया और जिसके परिणाम स्वरूप वह रायसेन किले को जीतने में सफल हुआ था । यह तोपें ढलवा लोहे से निर्मित की गयी हैं । तोप के निर्माण के लिए सर्वप्रथम मिटटी का एक साँचा तैयार किया जाता था । था जिस आकार तथा माप की तोप बनानी होती थी उसी आकार की तथा मोम की परत सांचे पर चढ़ा कर उसे पुनः नीत्ति के लेप से धक दिया जाता था । जब गर्म पिघली धातु इस सांचे में एक और से डाली जाती तब परिणाम स्वरूप मोम पिघल कर दूसरी ओर से छिद्र से बाहर निकल जाती और उसके स्थान पर डाली गयी धातु तोप के आकार में ढल जाती थी । यह मजाल लोडिंग तोप हैं । इनका प्रयोग करने के लिए तोप की नाल में सर्वप्रथम बारूद को सुनिश्चित मात्रा में छड़ की सहायता से भर दिया जाता था और फिर उसके आगे नाल के मुहाने पर तोप का गोला रख दिया जाता था ।जब तोप की नाल में स्थित छिद्र में से आग लगायी जाती तब नाल में भरी गयी बारूद में विस्फोट होता और तोप का गोल अत्यधिक वेग से लक्ष्य भेदने के लिए निकल जाता था ।
यह जानकारी पुरातत्व वेदताओं के आधार पर जारी की गयी हैं ।

 शिवमंदिर का मुख्य द्वार 

रायसेन किले स्थित भव्य शिवमंदिर सोमेश्वर धाम 
प्राचीन दुर्ग पर श्री सोमेश्वर धाम भगवन भोलेनाथ का प्राचीन मंदिर पुरे वर्ष में सिर्फ एक बार महाशिवरात्रि के दिन ही खुलता हैं यहाँ पर शिवरात्रि रायसेन जिले एवं बहार से कई श्रद्धालु आते हैं दर्शन करने । । किले पर स्थित इस मंदिर की सुंदरता देखते ही यहाँ की शिल्पकला सुन्दर दीवारें मजबूत इतिहास वर्णन करती हैं । मेरे एवं मेरे मित्रों द्वारा लीयते गए फोटो में मंदिर का मुख्यद्वार और मंदिर के अंदर की दीवारों की शिल्पकला सुंदरता देखते ही बनती हैं । मंदिर का विशाल प्रांगड़ पपुरातन कल में यहाँ पर बहुत अधिक संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होकर पूजा अर्चना करते थे । मंदिर के पीछे का फोटो भी हैं । '
किले परिसर स्थित मदागन ताल 
यह फोटो शिवमंदिर पेमिया मंदिर के पास का तालाब हैं जो की साल भर पानी से भरा इसका नाम मदागन ताल हैं यह किले का सबसे विशाल ताल हैं इसके पीछे कई पौराणिक कहानियां भी हैं । कहते हैं या ताल बहुत ही गहरा हैं और इसके बीच में एक विशाल कुआँ (कुण्ड) स्थित हैं ।



दुर्ग पर स्थित विभिन्न तालाब/कुण्ड प्राचीनकाल में जलसंरक्षण का प्रतीक 
किले के उत्तरी भाग में एक और विशाल तालाब हैं जो की वर्तमान में सूख चूका हैं । इन तालाबों के अतिरिक्त यहाँ रानीताल , कचहरी ताल, डोला-डोली ताल , डूस-डूरी ताल सागर ताल, गोलवाला ताल, आदि अनेकों ताल मध्ययुगीन जल प्रबंधन व्यवश्था के उत्कृष्ट ज्ञान को प्रदर्शित करते हैं । इन तालाबों के जल संग्रहण वर्षा तथा प्राकृतिक भूमिगत स्त्रोत से होता हैं । साथ ही यहाँ विभिन्न प्रणालों के माध्यम से छतों एवं जमीन से वर्षा का जल ढके हुए भूमिगत तालाबों में संग्रहित करने की व्यवस्था के प्रति जागरूक की परिचायक हैं ।
किले के बहरी और भी जलापूर्ति के लिए अनेक ताल थे । किले की पहाड़ी और सिततलाई पहाड़ी के मध्य गनहेरा नामक बांध बांध था जिसके उत्तरी ओर विशाल रामताल था , वाहन पश्चिमी ओर घोक्ला और खजिया ताल थे । किले के दक्षिणी ओर चोपड़ा ताल हैं ।
रायसेन दुर्ग पर स्तिथ यह शैलचित्र यहाँ की सभ्यता का प्रतीक देते हुए । गौर से देखने पर इन शैलचित्रों में भगवान शिव की प्रतिमा , शेर का चित्र , घोड़े का चित्र , हांथी का चित्र आदि चित्र दिखाई देते हैं जैसे की यह चित्रकला पुरातन काल के किसी युद्ध का या फिर नजाने किस बात का संकेत देती है ।
दुर्ग स्थित भव्य द्वार 

दुर्ग स्थित पिछला रास्ता भव्य द्वार 

दुर्ग स्थित भव्य द्वार 

दुर्ग स्थित भव्य द्वार 
दुर्ग पर कई भव्य द्वार हैं किले के दो भागों से किला परिसर में पहुँचने की व्यवस्था हैं । पुरातन काल में इन द्वारों पर सैनिकों की सख्त चाख चौवनध व्यवस्था रहती थी कड़ी सुरक्षा के बीच । आज भी पुरातन काल के इतिहास को समेटे हुए ये भव्य द्वार खड़े हुए हैं । 

बारादरी महल के पीछे का क्षेत्र जहाँ से देखने पर रायसेन का अत्यंत मनमोहक दृश्य दीखता हैं 

बारादरी महल का पिछला भाग 

बारादरी महल का पिछला भाग 

बारादरी महल का सामने का भाग 

किला परिसर का मनमोहक छायाचित्र 

किला परिसर का मनकमोहक छायाचित्र एक गुम्मद से लिया गया 

किला परिसर का मनमोहक दृश्य 

किला परिसर का मनमोहक दृश्य का छायाचित्र मुख्य मार्ग के सम्मुख दिखने वाला क्षेत्र 

किला परिसर स्थित् भवन 

किला परिसर स्थित भव्य बदल महल का छायाचित्र 

किला परिसर स्थित इत्रदान महल 

किला परिसर स्थित प्राचीन शिवमंदिर गुफा मंदिर किले के पिछले गेट के पास के भाग में स्थित 


और भी बहुत कुछ हैं इस भव्य ऐतिहासिक किले पर एक बार अवश्य पधारें ।