Saturday, 23 February 2019

बारूद के ढेर पर भारत

बारूद के ढेर पर भारत................

‘‘बारूद के ढेर पर भारत’’ सुनते ही यह शीर्षक भयानक सा प्रदर्षित होता है और कुछ बन्धुओं को तो पढ़ते समय ऐसा लगेगा कि आखिर इतना भयानक और खतरनाक शीर्षक क्यों रखा गया। बन्धुओं मेेरे मन में गत 6 वर्षाें से कुछ प्रष्न निरन्तर उमड़ते थे और नित्य मेैं उन प्रष्नों को उत्तर खोजने का प्रयास करता था , परन्तु उनका संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता था , मैं देष की कई समस्याओं जो कि भारत ही नहीं अपित संपूर्ण विष्व के लिए घातक सिद्ध होगी , ऐसे विचार मेरे मन में चलते थे , और जब मैं यह सब देखता था , तो ऐसा लगता था कि यह देष बारूद के ढेर पर रखा हुआ है , अगर किसी से थोड़ी सी भी माचिस की तिली जलाकर दिखा दी तो फिर सबकुछ................................आगे आप स्वयं समझदार हैं । बन्धुओं अब यह प्रष्न सभी के मन में उमड़ता है कि आखिर ‘‘बारूद के ढेर पर भारत’’ यह कैंसे हो सकता हैं ? आखिर भारत तो दुनिया का सदा से ही सर्वश्रृैष्ठ देष रहा है , अनेकों बाहरी आक्रांताओं के आक्रमण झेलने के पश्चात् भी , भारत अपने गौरवषाली अतीत को अपने दामन में समेटे हुये अडिग व अविचल खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा हैं । आईये अब जरा हम सभी समझने का प्रयास करें  कि आखिर कैंसे  ‘‘बारूद के ढेर पर भारत’’ .....................................................
हम सभी जानते हैं कि आतंकवाद आज भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विष्व के सम्मुख विष्वव्यापी संकट के रूप में खड़ा हुआ हैं, भारत भी इसके जहरीले दंष से अछूता नहीं रहा । इसी प्रकार भारत में नक्सलवाद की समस्या , फिर उसी प्रकार भारत के अंदर ही पनपने वाली तुच्छ प्रवृत्ति की सोच रखने वाली स्वार्थी राजनैतिक पार्टियां और उनकी कार्यप्रणाली , भारत के ही शीर्ष उच्च षिक्षण संस्थानों में अध्ययनरत टुकड़े-टुकड़े गैंग , जातीय एंव क्षेत्रीय एंव भाषीय वैमनस्यता फैलाने वाले संगठन , स्वयं के हित के लिए देष का नुकसान करने वाले एन.जी.ओ. , कट्टर मजबही सोच से उपर न उठने वाली विचारधारा और उसके कट्टरपंथी अनुयायी , भारत के विभिन्न क्षेत्रों जैसें:- राजनैतिक , सामाजिक , फिल्म जगत , साहित्य जगत , मिडिया जगत , व्यापार जगत या फिर यों कहें कि देष के अंदर शहरों में रहने वाले बौद्धिक आतंकवादी या शहरी नक्सलवादी जो कि जंगल से नक्सलवाद को शहरों में भी ले जाते हैं और अब उसे आतंकवाद में परिवर्तित करने में कदापि विचार नहीं करते । जब भारत के अंदर ही इतनी भयावह समस्यायें , मानव मात्र को क्षति पहुंचाने वाली समस्यायंे देखता हूं , तो मन व्यथीत हो उठता है। आईये अब हम सभी मिलकर इन समस्याओं को थोड़ा गहराई से अध्ययन करते हैं । 





हम सभी जानते हैं कि आज आतंकवाद विष्वव्यापी संकट के रूप में विष्व के सभी राष्ट्रों के सम्मुख खड़ा हुआ हैं। दक्षिण एषिया में अगर देखा जाये तो आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला देष भारत ही है , आतंकवाद से सबसे अधिक क्षति भारत को ही पहुंची है। आखिर इस आतंकवाद का जन्म कहां हुआ , इसका पालन पोषण कहां हुआ और यह रहता कहां हैं, यह आखिर किसके द्वारा किसके लिये किया जा रहा है, इसका उद्देष्य क्या है? ऐसे ही कई ओर भी प्रकार के प्रष्न सभी के मनों में चलते रहते हैं और ऐसे प्रष्न मन में आना स्वाभावित बात है, क्योंकि इस आतंकवाद से संपूर्ण विष्व को अत्यधिक क्षति पहुंची है। इस आतंकवाद को जन्म देने में कुछ पढ़े-लिखे और ज्यादा ही समझउार लोगों का हाथ रहा है। भारत में हम सभी आतंकवाद का अध्ययन करेें तो हमेें कुछ निम्न प्रकार के आतंकवाद के स्वरूप दिखाई देते हेैं:- 

जिहादी आतंकवाद:- यह प्रमुख आतंकवाद की श्रैृणी में आता हैं, आज भारत ही नहीं पूरी दुनिया इस प्रकार के आतंकवाद का सामना कर रही है और इससे ग्रसित हैं। आज पूरी दुनिया इस जिहादी आतंकवाद से छुटकारा चाहती है। हम अगर दुनिया के सारे प्रमुख संगठन देखें जैेसंे लष्कर-ऐ-तैयबा , जैष-ए-मोहम्मद , तालीबान , हिजबुल-मुजाहिद्दीन , आई.एस.आई.एस. इत्यादि एैंसे ही अनेक संगठन सभी का संबंध इस्लाम और जिहाद से होता हैं , क्योंके जिहाद शब्द इस्लाम से ही जुड़ा हुआ है, और यह सारे आतंकवादी संगठन स्वयं भी स्वीकारते हैं कि यह जिहाद के लिये यह कार्य कर रहैं हैं। इस प्रकार यह कट्टरपंथी सोच के कारण भी इस प्रकार का आतंकवाद उत्पन्न होता है जो कि मानवमात्र के लिए खतरा है, आज हम सभी को प्रमुखता से इस प्रकार के आतंकवाद को समझने की आवष्यक्ता है। इसी कट्टर जिहादी मानसिकता से प्रेरित कुछ नौ-जवान युवा आये दिन इस देष की किसी न किसी षिक्षण संस्थान जैंसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनीर्वसीटी में आतंकी सामाग्री के साथ पकड़ाये जाते हैं, तो कभी दक्षित भारत के कट्टरवादी संगठन पीएफआई के सदस्य भी एटीएस द्वारा पकड़ाये जाते हैं , तो कभी म.प्र. में बैन हुये संगठन सिमी से प्रेरित भी आतंकी पकड़ाये जाते हैं ,और सिमी से जुड़े युवा निर्दोष हैं, ऐसी माननीय सुप्रीम कोर्ट के अंदर याचिका दायर करने वाले कुछ तुच्छ प्रवृत्ति के नेतागण भी इसी देष में पाये जाते हैं , जो कि सभी साथ मिलकर इस प्रकार के आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। 








नक्सली आतंकवाद:- माओ के नेतृत्व में चीनी का्रंति हुई , जिससे प्रेरणा लेकर भारत में सर्वप्रथम 1967 में पं.बंगाल में नक्सलबाड़ी नामक स्थान से चारू मजूमदार के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ। इस प्रकार क्रांति के नाम पर तलवार और बंदूक की नोंक पर नक्सलवादी आतंक का सहारा लेकर अपनी मांगों को पूरा करवाना चाहते हैं । यह आंदोलन पहले तो 1970 तक 4 प्रदेषों में ही सीमित था , परन्तु आज मध्यप्रदेष , छत्तीसगढ़ , महाराष्ट्र, तमिलनाडू , केरल पूर्वोत्तर राज्यों त्रिपुरा , अरूणाचल प्रदेष , जम्मूकष्मीर कई प्रदेषों फैल गया है, इन्होनें यहां ‘‘रेड काॅरिडोर’’ का निर्माण कर लिया है , इस प्रकार यह नेपाल से लेकर केरल तक एक सुरक्षित गलियारा बना लिये हैं, जो कि प्रत्येक भारतीय के लिए चिंतनीय विषय है। इस प्रकार के आतंकवाद से कई बार हमारे देष के अर्द्धसैनिक बलों , सी.आर.पी.एफ. को भी भारी क्षति पहुंची है। इस प्रकार के आतंकवाद का भी भारत में बढ़ना बेहद चिंता का विषय है। भारत का लगभग 11.09 प्रतिषत क्षेत्र यानि के 4.51 प्रतिषत आबादी आज नक्सलवाद से प्रभावित है और यह संख्या निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। 



बौद्धिक आतंकवाद:-यह भी आतंकवाद का ही एक प्रकार है और आतंकवाद के जन्म मे सबसे प्रमुख भूमिका इसी की रहती है। किसी भी व्यक्ति को बौद्धिक स्तर पर दिगभ्रमित करके उसके मन मस्तिष्क पर एैसी छाप अंकित की जाती है, कि वह आतंक के लिए प्रेरित हो उठता है। आतंक का फिर यह नया स्वरूप भी इसलिए आया , जहां तक हो सके बन्दूक से तो आतंकवाद के मसीहा अपना कार्य कर ही रहे हैं , पर बन्दूक से शायद सभी कार्य जगह कार्य नहीं किया जा सकता इसिलिऐ उसका नया स्वरूप बौद्धिक आतंकवाद है , इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर ऐसा इतिहास प्रस्तुत करना जिससे कि जिन्होनें भी इस देष में गलत किया जैंसे मुगल और अंग्रेजों ने उन्हें सही दर्षाया जाये , उनकी नीतियों को सही दर्षाना और युवाओं को दिगभ्रमित कर , दिषाहीन कर आंदोलन के लिए प्रेरित करना और समाज में एक इस प्रकार की बहस उत्पन्न करना कि जिससे की समाज में वैमनस्यता उत्पन्न हो , समाज आपस में बंटा रहे , और राष्ट्रविरोधी ताकतों के इरादे सफल हो सके , इसका दुष्परिणाम हम समय-समय पर देखते हैं , चाहे वह जातीय वैमनस्यता को लेकर हो या फिर क्षेत्रवाद और भाषावाद को लेकर विवाद हो या फिर जे.एन.यू. का टुकड़े-टुकड़े गैंग हो , इस प्रकार का आतंकवाद आज भारत के सम्मुख बड़ी समस्या के रूप में खड़ा हुआ है।









निष्कर्ष:- इस प्रकार हमने यहां संक्षिप्त में जानने का प्रयास किया कि भारत के सामने कदम-कदम पर कई संकटमयी समस्यायें खड़ी हुई हैं । पग-पग पर एक नई समस्या भारत का मार्ग अवरूद्ध करने के लिए खड़ी हुई है और बहुत पहले से ही भारत के अंदर अपनी जड़ें गहरी करती जा रही हैं और शायद यह इसलिऐ संभव हो सका है क्यांेकि इस देष की जनता अपनी शक्ति को पहचान नहीं सकी और कुछ स्वार्थी राजनैतिक पार्टीयों ने अपने निजी कारणों के चलते इन्हें रोकने का प्रयास भी नहीं किया गया , तभी एक राजनैतिक पार्टी के प्रमुख नेता नक्सलवादियों को क्रांतिकारी कहकर भी संबोधित करते हैं , क्योंकि कुछ लोग चाहते ही नहीं कि समस्याओं का समाधान हो , वह समस्याओं को बने देने रहना ही चाहते हैं और इसिलिये कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाये थे। उन्होनें जो किया सो ठीक , पर आज हम भी हर कार्य के लिये किसी  न किसी पर आश्रित हैं , आज भी हम सिर्फ अपने भले की ही सोचते हैं , आज भी हम किसी भी कार्य को करने से पूर्व पहले अपना व्यवक्तिगत फायदा देखते हैं , शायद इसिलिये ही कुछ लोगों कि हिम्मत हो जाती है, इस देष के विरोध में कार्य करने की । अगर हम सभी देष के अंदर मिलकर एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण करें , इस देष की सारी जनता साथ मिलकर रहे , उनमें सबसे पहले हम भारतवासी इस बात का बोध हो , जाति , भाषा , मजहब , पंथ , सम्प्रदाय इत्यादि से उपर अगर सबके मनों में राष्ट्रधर्म प्रधान हो तो फिर इस प्रकार की भयावह समस्याओं से बचा जा सकता है। 

समाधान:- ‘‘आव्हान’’ ही सारी समस्याओं का समाधान है अर्थात् हम सभी भारतवासियों से आव्हान अगर हम सभी भारतवासी अपनी जिम्मेदारियों को समझ जायें  और किसी भी राष्ट्रवादी , समाजहितैषी संगठन का अंग बनकर अगर अपने राष्ट्र के लिये अपना जीवन जीना सीख लें और ‘‘तेरा वैभव अमर रहे मां,हम दिन चार रहे न रहें’’ अथवा ‘‘मैं रहूं या न रहूं , भारत यह रहना चाहिए’’ का भाव अपने हृदयपटल पर अंकित कर लें और सुबह-षाम , रात-दिन प्रत्येक क्षण पुनःष्च-पुनःष्च इसका स्मरण करें तो शायद फिर यह जो ‘‘बारूद के ढेर पर भारत’’ है, इस समस्या का समाधान संभव हो सकेगा , वरना असहाय बनकर रोने , राग अलापते रहने से कुछ नहीं होगा , इसके लिए आवष्यक्ता है , प्रत्येक को उठ खड़ा होने की और देष के प्रत्येक को राष्ट्र के लिए जीवन जीने हेतु प्रेरित करने की और समाजजीवन में किसी न किसी प्रकार का समाजहितैषी और राष्ट्रहितैषी कार्य करने की , जिस दिन भारत का प्रत्येक जन एक साथ मिलकर , अनेकों कंठों से , एक स्वर में भारत के हित की बात करने लगेगा , उस दिन भारत सुरक्षित भी होगा और पुनः विष्वगुरू भी बनेगा। 
आषा है आप सभी उपर्युक्त शीर्षक के धीर-गंभीर अर्थ को समझे होगें और समाधान हेतु कार्य करेंगें। भारत की जनता से आव्हान ‘‘भारत जागो , विष्व जगाओ’’ यही हम सभी भारतवासियों से आज पूरे विष्व का आव्हान है, क्योंकि पूरा विष्व जानता है और चाहता है कि भारत ही हमारा नेतृत्व करे , जिससे कि विष्व में मानवमात्र का कल्याण संभव हो सके। 

        ‘‘आईये भारतवासियों , आगे आईये , निज स्वार्थ त्यागकर, साथ कदम आगे बढ़ाकर , कंधे से कंधा मिलाकर , भारत का मान बढ़ाईये , अपनी ज्ञानषक्ति प्रकटाईये , निज गौरव का भान लिये , विष्व को मानवता का पाठ पढ़ाईये , सारी समस्यायें साथ मिलकर सुलझाईये , आईये भारतवासियों आगे आईये.................

‘‘भारत माता की जय’’
‘‘वन्दे जगतगुरू भारत मातरम्’’ 

ःःःः- रा. प्रषान्त भारतीय
ई-मेल:ं- prashantmalviya007@gmail.com

Friday, 22 February 2019

एक कदम ‘‘कर्तव्य’’ की ओर...................



एक कदम ‘‘कर्तव्य’’ की ओर..................

आज का युग आधुनिक्ता का युग है। आधुनिकता के इस युग में भारत भी निरन्तर आगे बढ़ रहा है। सन् 1947 में भारत तदाकथित रूप से स्वतंत्र हुआ वो भी खण्डित आजादी मिली , फिर सन् 1950 में जाकर संविधान विधिवत रूप से लागू हुआ । दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान द्वारा हम भारतीयों को कई मौलिक अधिकार प्राप्त हुये और तभी से समाज में धीरे-धीरे अपने अधिकारों के प्रति ओर अधिक सजगता बढती जा रही है। आज समाज में प्रत्येक वर्ग में अपने अपने अधिकारों के प्रति जांे सजगता आ रही है , वह अच्छा भी है ,आज स्वतंत्रता के पश्चात् शनैः-षनैः समाज जागृत तो हो ही रहा है और शायद यह षिक्षा के कारण ही संभव हो पाया है कि हम हमारे अधिकारों के प्रति जागृत तो हुये , अब कोई हमें यों हि मूर्ख नहीं बना सकता। 



अधिकारों की प्राप्ति के लिये आन्दोलन धरना प्रदर्षन सबकुछ होता दिखाई देता है, आजकल सभी जगह जहां देखो वहां किसी न किसी बात को लेकर , अधिकारों को लेकर आंदोलन , आंदोलन , आंदोलन ....................................पर यह क्या हुआ ? आंदोलन में रेल की पटरी उखाड़ दी , बसों में आग लगा दी गई , सड़कों पर सब्जियां फेंकी गई , जिस देष में दूध की एक बूंद भी नहीं बहाई जाती थी वहां आज आंदोलनों के माध्यम से दूध सड़कों पर बहाने का कार्य भी किया जा रहा है , अपना आंदोलन अपने अधिकार के प्रति पर यह क्या किसी दूसरे के अधिकारों का हनन हो रहा है ,आंदोलन के नाम पर किसी भी दुकान जला दी , पर कौनसी बड़ी बात हो गई , यह सब तो चलता रहता है , आखिर बात तो अपने अधिकारों की है।  चलिये कोई बात नहीं आखिर यह सबकुछ हमें संवैधानिक रूप से अधिकार प्राप्त है, और अपने  अधिकार प्राप्त करने के लिए हमें कुछ भी करने का अधिकार प्राप्त है और कोई भी शायद हमें हमारे इस अधिकार से वंचित नहीं रख सकता। 

                                     


 



             चलिये ठीक ही है , कम से कम हम अपने अधिकारों के प्रति जागृत तो हुये , पर यह क्या हम स्वार्थी कब से हो गये , इस अधिकार की लड़ाई में कहीं हम कुछ भूल तो नहीं गये , थोड़ा दिमाग पर जोर लगाईये , थोड़ा ओर जोर लगाईये ,.......... अरे हां याद आ गया संविधान में वर्णित कर्तव्य..............हमनें कहीं किसी पुस्तक में पढ़ा था महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के बारे में , नेताजी ने  आजाद हिन्द फौज की स्थापना की और साथ ही साथ नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जी का सपना था कि भारत की स्वतंत्रता के लगभग 20 वर्ष तक तो भारत में आर्मी विद्यालय खुलने ही चाहिए, ताकि भारत के प्रत्येक व्यक्ति को सैनिक षिक्षा दी जानी चाहिए, इसके पीछे यह नहीं था की भारत के प्रत्येक व्यक्ति को सेना में भर्ती कर सैनिक ही बनाना था , परन्तु इसके पीछे धीर-गम्भीर कारण था कि इससे भारत के प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में अपनी इस पावन पुनित मातृभमि के प्रति देषभक्ति की भावना प्रबल रूप से विद्यमान हो क्योंकि किसी भी राष्ट्र की राष्ट्रीय शक्ति वहां के जनमानस की राष्ट्र के प्रति राष्ट्रभक्ति पर निर्भर करती है। परन्तु कुछ स्वार्थी लोगों ने इस देष को वैंसा बनने ही नहीं दिया गया , जिस कारण आज हम इस देष में जो अधिकारों की लड़ाई देखते हैं और उसमें भी राष्ट्रीय समपत्ति का नुकसान होता देखते हैं तो हमारे मन को अत्यधिक पीड़ा होती है , क्या हमारे शहीदों ने इसी भारत की कल्पना की थी? एक समय बो था ...जब आई.सी.एस. की परीक्षा सबसे अधिक उत्कृष्ट अंकों से उत्तीर्ण होने के बाद भी नेताजी ने अंगे्रजों की नौकरी को ठुकरा दिया था , अपने सुखमय जीवन का आर्कषण ठुकरा दिया था , और उनके इस निर्णय के पीछे मात्र एक ही कारण था अपनी मातृभूमि के प्रति अपना कर्तव्य.....................इस कर्तव्य का कितना अधिक महत्व है । परन्तु आज के भारत के स्थिति थोड़ी भिन्न सी दिखाई पड़ती है , आज हर कोई अपने अधिकारों को तो पाना चाहता है , परन्तु नेताजी की तरह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से दूरी बनाना चाहता है। 

    

            मित्रों यह जो देष है न भारतवर्ष.............इसका और अपना जन्म , जन्मान्तरों का संबंध रहा है , आप और हम सभी अत्यंत सौभाग्यषाली है कि हमें इस पावनपुनित कर्मभूमि में जन्म लेने का अवसर मिला , जहां मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम जी ने जन्म लिया , चक्रसुदर्षनधारी श्रीकृष्ण जी ने जन्म लिया , वहीं यह भूमि समाज कल्याण के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महर्षि दधिचि , सत्य की अनवरत पालन करने वाले महाराजा हरीषचन्द्र, समाज में प्रबल आत्मविष्वास जागृत कर समाज कल्याण में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले श्रीगुरूगोविन्द सिंह जी , सिर्फ अपनी औजस्वी वाणी से ही भारत का संपूर्ण विष्व में मान बढ़ाने वाले पूज्य स्वामी विवेकानंद जी एंव अपने पराक्रम और शौर्य से संस्कृति की रक्षा करने वाले महाराणा प्रताप , छत्रपति षिवाजी महाराज इत्यादि या फिर हंसते हंसते प्राणोत्सर्ग करने वाले भगतसिंह , राजगुरू, सुखदेव , चन्द्रषेखर आजाद, वीर सावरकर, इत्यादि ने अपने जीवन में सिर्फ अपने कर्तव्यों की पालन किया  अपने राष्ट्र के प्रति अपने क्या कर्तव्य हैं , उनका ही पालन किया आज मित्रों हमें भी यही  आवष्यक्ता है कि हम क्या कर सकते हैं यह विचार करें और यह जो देष है , यह हमारा भी है और हमारी भी इस देष के प्रति किसी न किसी प्रकार की जिम्मेदारी भी है और हम सभी को आवष्यक्ता है कि सभी साथ मिलकर ‘‘एक कदम कर्तव्य की ओर’’  बढ़ायें , जिससे की हमारा देष पूरे विष्व में अपना नाम कर सके और भारत पुनः विष्वगुरू बन सके। इस देष को हम सभी से बस यही आषा है कि हम जहां पर भी वहां पर अपने इस राष्ट्र के लिये क्या सकारात्मक कर सकते हैं, बस इस बात का विचार करें , हमारे सामने कई सारी समस्यायें हैं , जब भी हम कोई भी अच्छा सकारात्मक कार्य प्रारंभ करने वाले होते होंगें तो हमारे सामने कई समस्यायें आती होगीं , जो हमारा मार्ग अवरूद्ध करती होगीं , परन्तु मित्रों यह भी परम सत्य हैं कि समस्यायें अनेक हैं , परन्तु सभी समस्याओं का समाधान एक है और वह है ‘‘हम’’ और इस ‘‘हम’’ का आभास हमें किसी श्रेृष्ठ विचारधारा अथवा ध्येय को लेकर कार्य करने वाले संगठन में मिलता है , तो आईये हम भी ऐसे ही किसी श्रृैष्ठ विचारधारा ओैर ध्येय वाले संगठन से जुड़े एंव उस संगठन से कुछ सीख लेकर समाजजीवन के कई क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से समाजहितार्थ हम क्या कार्य कर सकते हैं , इस विषय में सोचें और अपने ‘‘कर्तव्य’’ का निर्वहन पूरी निष्ठा से करें।   



              आषा है कि आप सभी भी अपने -अपने स्थानों पर अपने राष्ट्र के हित के लिए किसी न किसी प्रकार के कर्तव्य का चयन करेंगें और अपने इस उभरते हुये नये भारत का उज्जवल भविष्य ,अपने कठिन परिश्रम से गढ़ेगें। 

     ‘‘अधिकारों की इस आंधी में , हम अपने ‘‘कर्तव्य’’ न भूलें’’
            ‘‘निज स्वार्थ पूरा करने को , माता के हितों को न भूलें’’

‘‘भारत माता की जय’’
‘‘वन्दे भारत मातरम्’’ 


:- रा. प्रषान्त भारतीय
ई-मेल:- prashantmalviya007@gmail.com