एक कदम ‘‘कर्तव्य’’ की ओर..................
आज का युग आधुनिक्ता का युग है। आधुनिकता के इस युग में भारत भी निरन्तर आगे बढ़ रहा है। सन् 1947 में भारत तदाकथित रूप से स्वतंत्र हुआ वो भी खण्डित आजादी मिली , फिर सन् 1950 में जाकर संविधान विधिवत रूप से लागू हुआ । दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान द्वारा हम भारतीयों को कई मौलिक अधिकार प्राप्त हुये और तभी से समाज में धीरे-धीरे अपने अधिकारों के प्रति ओर अधिक सजगता बढती जा रही है। आज समाज में प्रत्येक वर्ग में अपने अपने अधिकारों के प्रति जांे सजगता आ रही है , वह अच्छा भी है ,आज स्वतंत्रता के पश्चात् शनैः-षनैः समाज जागृत तो हो ही रहा है और शायद यह षिक्षा के कारण ही संभव हो पाया है कि हम हमारे अधिकारों के प्रति जागृत तो हुये , अब कोई हमें यों हि मूर्ख नहीं बना सकता।
अधिकारों की प्राप्ति के लिये आन्दोलन धरना प्रदर्षन सबकुछ होता दिखाई देता है, आजकल सभी जगह जहां देखो वहां किसी न किसी बात को लेकर , अधिकारों को लेकर आंदोलन , आंदोलन , आंदोलन ....................................पर यह क्या हुआ ? आंदोलन में रेल की पटरी उखाड़ दी , बसों में आग लगा दी गई , सड़कों पर सब्जियां फेंकी गई , जिस देष में दूध की एक बूंद भी नहीं बहाई जाती थी वहां आज आंदोलनों के माध्यम से दूध सड़कों पर बहाने का कार्य भी किया जा रहा है , अपना आंदोलन अपने अधिकार के प्रति पर यह क्या किसी दूसरे के अधिकारों का हनन हो रहा है ,आंदोलन के नाम पर किसी भी दुकान जला दी , पर कौनसी बड़ी बात हो गई , यह सब तो चलता रहता है , आखिर बात तो अपने अधिकारों की है। चलिये कोई बात नहीं आखिर यह सबकुछ हमें संवैधानिक रूप से अधिकार प्राप्त है, और अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए हमें कुछ भी करने का अधिकार प्राप्त है और कोई भी शायद हमें हमारे इस अधिकार से वंचित नहीं रख सकता।
आज का युग आधुनिक्ता का युग है। आधुनिकता के इस युग में भारत भी निरन्तर आगे बढ़ रहा है। सन् 1947 में भारत तदाकथित रूप से स्वतंत्र हुआ वो भी खण्डित आजादी मिली , फिर सन् 1950 में जाकर संविधान विधिवत रूप से लागू हुआ । दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान द्वारा हम भारतीयों को कई मौलिक अधिकार प्राप्त हुये और तभी से समाज में धीरे-धीरे अपने अधिकारों के प्रति ओर अधिक सजगता बढती जा रही है। आज समाज में प्रत्येक वर्ग में अपने अपने अधिकारों के प्रति जांे सजगता आ रही है , वह अच्छा भी है ,आज स्वतंत्रता के पश्चात् शनैः-षनैः समाज जागृत तो हो ही रहा है और शायद यह षिक्षा के कारण ही संभव हो पाया है कि हम हमारे अधिकारों के प्रति जागृत तो हुये , अब कोई हमें यों हि मूर्ख नहीं बना सकता।
अधिकारों की प्राप्ति के लिये आन्दोलन धरना प्रदर्षन सबकुछ होता दिखाई देता है, आजकल सभी जगह जहां देखो वहां किसी न किसी बात को लेकर , अधिकारों को लेकर आंदोलन , आंदोलन , आंदोलन ....................................पर यह क्या हुआ ? आंदोलन में रेल की पटरी उखाड़ दी , बसों में आग लगा दी गई , सड़कों पर सब्जियां फेंकी गई , जिस देष में दूध की एक बूंद भी नहीं बहाई जाती थी वहां आज आंदोलनों के माध्यम से दूध सड़कों पर बहाने का कार्य भी किया जा रहा है , अपना आंदोलन अपने अधिकार के प्रति पर यह क्या किसी दूसरे के अधिकारों का हनन हो रहा है ,आंदोलन के नाम पर किसी भी दुकान जला दी , पर कौनसी बड़ी बात हो गई , यह सब तो चलता रहता है , आखिर बात तो अपने अधिकारों की है। चलिये कोई बात नहीं आखिर यह सबकुछ हमें संवैधानिक रूप से अधिकार प्राप्त है, और अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए हमें कुछ भी करने का अधिकार प्राप्त है और कोई भी शायद हमें हमारे इस अधिकार से वंचित नहीं रख सकता।

मित्रों यह जो देष है न भारतवर्ष.............इसका और अपना जन्म , जन्मान्तरों का संबंध रहा है , आप और हम सभी अत्यंत सौभाग्यषाली है कि हमें इस पावनपुनित कर्मभूमि में जन्म लेने का अवसर मिला , जहां मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम जी ने जन्म लिया , चक्रसुदर्षनधारी श्रीकृष्ण जी ने जन्म लिया , वहीं यह भूमि समाज कल्याण के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महर्षि दधिचि , सत्य की अनवरत पालन करने वाले महाराजा हरीषचन्द्र, समाज में प्रबल आत्मविष्वास जागृत कर समाज कल्याण में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले श्रीगुरूगोविन्द सिंह जी , सिर्फ अपनी औजस्वी वाणी से ही भारत का संपूर्ण विष्व में मान बढ़ाने वाले पूज्य स्वामी विवेकानंद जी एंव अपने पराक्रम और शौर्य से संस्कृति की रक्षा करने वाले महाराणा प्रताप , छत्रपति षिवाजी महाराज इत्यादि या फिर हंसते हंसते प्राणोत्सर्ग करने वाले भगतसिंह , राजगुरू, सुखदेव , चन्द्रषेखर आजाद, वीर सावरकर, इत्यादि ने अपने जीवन में सिर्फ अपने कर्तव्यों की पालन किया अपने राष्ट्र के प्रति अपने क्या कर्तव्य हैं , उनका ही पालन किया आज मित्रों हमें भी यही आवष्यक्ता है कि हम क्या कर सकते हैं यह विचार करें और यह जो देष है , यह हमारा भी है और हमारी भी इस देष के प्रति किसी न किसी प्रकार की जिम्मेदारी भी है और हम सभी को आवष्यक्ता है कि सभी साथ मिलकर ‘‘एक कदम कर्तव्य की ओर’’ बढ़ायें , जिससे की हमारा देष पूरे विष्व में अपना नाम कर सके और भारत पुनः विष्वगुरू बन सके। इस देष को हम सभी से बस यही आषा है कि हम जहां पर भी वहां पर अपने इस राष्ट्र के लिये क्या सकारात्मक कर सकते हैं, बस इस बात का विचार करें , हमारे सामने कई सारी समस्यायें हैं , जब भी हम कोई भी अच्छा सकारात्मक कार्य प्रारंभ करने वाले होते होंगें तो हमारे सामने कई समस्यायें आती होगीं , जो हमारा मार्ग अवरूद्ध करती होगीं , परन्तु मित्रों यह भी परम सत्य हैं कि समस्यायें अनेक हैं , परन्तु सभी समस्याओं का समाधान एक है और वह है ‘‘हम’’ और इस ‘‘हम’’ का आभास हमें किसी श्रेृष्ठ विचारधारा अथवा ध्येय को लेकर कार्य करने वाले संगठन में मिलता है , तो आईये हम भी ऐसे ही किसी श्रृैष्ठ विचारधारा ओैर ध्येय वाले संगठन से जुड़े एंव उस संगठन से कुछ सीख लेकर समाजजीवन के कई क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से समाजहितार्थ हम क्या कार्य कर सकते हैं , इस विषय में सोचें और अपने ‘‘कर्तव्य’’ का निर्वहन पूरी निष्ठा से करें।
आषा है कि आप सभी भी अपने -अपने स्थानों पर अपने राष्ट्र के हित के लिए किसी न किसी प्रकार के कर्तव्य का चयन करेंगें और अपने इस उभरते हुये नये भारत का उज्जवल भविष्य ,अपने कठिन परिश्रम से गढ़ेगें।
‘‘अधिकारों की इस आंधी में , हम अपने ‘‘कर्तव्य’’ न भूलें’’
‘‘निज स्वार्थ पूरा करने को , माता के हितों को न भूलें’’
‘‘भारत माता की जय’’
‘‘वन्दे भारत मातरम्’’
:- रा. प्रषान्त भारतीय
ई-मेल:- prashantmalviya007@gmail.com







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